सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी।
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
ये लाइने पढ़ सुनकर हम सब बड़े हुए हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बात आती है तो रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे आगे होता है। झांसी की रानी की वो तस्वीर हम सबके ज़ेहन में है जिसमें घोड़े पर बैठी रानी पीठ पर अपने बच्चे को बांधे अंग्रेजों से लड़ रही हैं। आपको बता दें कि दावा किया जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई को सिर्फ एक ही अंग्रेज शख्स देख पाया था। लक्ष्मीबाई के जन्मदिवस पर आइए मिलाते हैं आपको उसी शख्स से……
रानी को देखने वाले पहले अंग्रेज थे जॉन लैंग-
रानी लक्ष्मी बाई को देखने वाले शख्स थे ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले जॉन लैंग। जॉन लैंग ब्रिटेन में रहते थे और ब्रिटेन की सरकार के खिलाफ कोर्ट में मुकदमें भी लड़ा करते थे। रानी लक्ष्मीबाई ने भी जॉन को अपना केस लड़ने के लिए नियुक्त किया था।
रानी लक्ष्मी बाई को जब मेजर एलिस ने किला छोड़ने का फरमान सुनाया। उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई किला छोड़कर दूसरे महल में रहने लगी। ऐसे में किला वापस पाने के लिए उन्होंने केस लड़ने का सोचा और अंग्रेजों से बैर रखने वाले जॉन लैंग को सोने की पट्टी में पत्र लिखकर मिलने को बुलवाया और अपना केस लड़ने का आग्रह किया जिसे जॉन ने स्वीकार कर लिया।
जॉन लैंग द्वारा लिखी किताब से हुआ खुलासा-
जॉन लैंग ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि उन्हें रानी लक्ष्मी बाई का केस लड़ने के लिए रानी से मिलना पड़ा। इसलिए वो भारत आए। जॉन ने अपनी भारत यात्रा को एक किताब में समेट दिया। जिसमें रानी लक्ष्मीबाई की खूबसूरती व उनसे मिलने का संदर्भ भी है। जॉन की किताब का नाम है- ‘वांडरिंग्स इन इंडिया’
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जॉन लिखते है कि रानी लक्ष्मीबाई ने महल के ऊपरी कक्ष में उन्हें बुलवाया। रानी और लैंग के बीच में एक पर्दा पड़ा हुआ था जिसमें से रानी का चेहरा बिल्कुल भी नहीं दिख रही था, तभी अचानक रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव ने पर्दा हटा दिया। और लैंग ने रानी का दीदार कर लिया।
रानी की खूबसूरती के कायल हो गए थे लैंग-
अपनी किताब में जॉन लैंग ने रानी की खूबसूरती की खूब तारीफ की है। लैंग ने रानी के चेहरे की बनावट और नाक नख्श को बेहतरीन बताया। साथ ही ये भी लिखा है कि रानी की आवाज रूआंसी और जरा फटी हुई सी थी।
मोदी ने भी किया था जॉन लैंग का जिक्र-
साल 2014 के ऑस्ट्रेलिया दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लैंग का ज़िक्र किया था। पीएम ने लैंग का ज़िक्र कर बताया कि लैंग की मदद ने भारत-ऑस्ट्रेलिया के संबंधों को पुराने दौर से ही काबिले तारीफ बनाया था।
रस्किन बॉन्ड ने ढूँढ़ी लैंग की कब्र-
मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड ने लैंग की कब्र 1964 में मसूरी में ढूँढ़ी थी। जिसके बाद भारत में लैंग के बारे में लोगों को पता चल पाया था।
जॉन लैंग कभी मसूरी आए भी थे या नहीं इसकी अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है। और इससे संबंधित कोई दस्तावेज भी नहीं मिल सके हैं।
जॉन लैंग ने एक तरफ तो रानी लक्ष्मीबाई की मदद की, उसके लिए देश उनका शुक्रगुजार है। वहीं दूसरी तरफ आज के समय में रानी लक्ष्मीबाई के व्यवहार, खूबसूरती और साहस के बारें में भी लैंग की किताब बहुत कुछ बताती है। इसके लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा।
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