ओरछा का इतिहास 8वीं सदी से शुरू होता है, जब महान क्षत्रिय प्रतिहार (परिहार) सम्राट मिहिर भोज ने इसकी स्थापना की थी। इस जगह की पहली और सबसे रोचक कहानी एक मंदिर की है। जो मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन भगवान की मूर्ति स्थापना के समय वह अपने जगह से हिली नहीं। इस मूर्ति को मधुकर शाह के राज्यकाल के दौरान उनकी रानी गनेश कुवर अयोध्या से लाई थीं। चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं सका। इसे भगवान का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया। और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।
मंदिर में बुंदेलाओं की अद्भुत वास्तुशिल्प के प्रमाण-
मंदिर के पास एक बगीचा है जिसमें बहुत ऊंची दो मीनार लोगों के प्रलोभन का केन्द्र हैं। जिसे सावन भादों कहा जाता है इनके नीचे बनी सुरंगों को शाही परिवार अपने आने-जाने के रास्ते के तौर पर प्रयोग करता था। इन मीनार के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है कि वर्षा ऋतु में सावन के महीने के खत्म होने और भादों मास के शुभारंभ के समय ये दोनों मीनारे आपस में जुड़ जाते थे। हालांकि इसके बारे में पुख्ता सबूत नहीं हैं। इन मीनारों के नीचे जाने के रास्ते बंद कर दिये गये हैंइन मंदिरों को दशकों पुराने पुल से पार कर शहर के बाहरी इलाके में राजनिवास हैं।
यहां चार महल, जहांगीर महल, राज महल, शीश महल और इनसे कुछ दूरी पर बना राय परवीन महल हैं। इनमें से जहांगीर महल के कहानियाँ सबसे ज्यादा मशहूर हैं, जो मुगल बुंदेला दोस्ती का प्रतीक है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबुल फज़ल को शहजादे सलीम को काबू में करने के लिए भेजा था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया। इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी।
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ये महल बुंदेलाओं की वास्तुशिल्प के प्रमाण हैं। खुले गलियारे, पत्थरों वाली जाली का काम, जानवरों की मूर्तियां, बेलबूटे जैसी तमाम बुंदेला वास्तुशिल्प की विशेषताएं यहां साफ देखी जा सकती हैं।
इसी महल से जुडी है हरदौल की गाथा-
अब बेहद शांत दिखने वाले ये महल अपने जमाने में ऐसे नहीं थे। यहां रोजाना होने वाली नई हलचल से उपजी कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं। इन्हीं में से एक है हरदौल की कहानी, जो जुझार सिंह के राज्य काल की है।
दरअसल, मुगल जासूसों की साजिशभरी कहानियों के कारण् इस राजा का शक हो गया था कि उसकी रानी से उसके भाई हरदौल के साथ संबंध हैं। लिहाजा उसने रानी से हरदौल को ज़हर देने को कहा। रानी के ऐसा न कर पाने पर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हरदौल ने खुद ही जहर पी लिया और त्याग की नई मिसाल कायम की।
बुंदेलाओं का राजकाल 1783 में खत्म होने के साथ ही ओरछा भी गुमनामी के घने जंगलों में खो गया और फिर यह स्वतंत्रता संग्राम के समय सुर्खियों में आया। दरअसल, स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहां के एक गांव में आकर छिपे थे। आज उनके ठहरने की जगह पर एक स्मृति चिन्ह भी बना है।
बुन्देलों और जहांगीर की दोस्ती की मिशाल है ओरछा-
बुन्देलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की यह निशानी ओरछा का मुख्य प्रलोभन है। महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं। तीन मंजिला यह महल जहांगीर के स्वागत में राजा बीरसिंह देव ने बनवाया था।
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वास्तुकारी की दृष्टि से यह अपने जमाने का श्रेष्ठ उदाहरण है।यह महल ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में एक है। इसका निर्माण मधुकर शाह ने 17 वीं सदी में करवाया था। राजा बीरसिंह देव उन्हीं के उत्तराधिकारी थे। यह महल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक भित्तिचित्रों के लिए विख्यात है। महल में धार्मिक ग्रन्थों से जुड़ी तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं।
रामराजा मंदिर-
यह मंदिर ओरछा का सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मंदिर है। यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि राजा मधुकर को भगवान राम ने सपने में दर्शन दिए और अपना एक मंदिर बनवाने को कहा।
यह महल राजा इन्द्रमणि की खूबसूरत गणिका प्रवीणराय की याद में बनवाया गया था। वह एक कवयित्री और संगीतकारा थीं। मुगल सम्राट अकबर को जब उनकी सुंदरता के बारे में पता चला तो उन्हें दिल्ली लाने का आदेश दिया गया।
इन्द्रमणि के प्रति प्रवीन के सच्चे प्रेम को देखकर अकबर ने उन्हें वापस ओरछा भेज दिया।
यह दो मंजिला महल प्राकृतिक बगीचों और पेड़-पौधों से घिरा है। राय प्रवीन महल में एक छोटा हाल और चेम्बर है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर-
यह मंदिर 1622 ई. में बीरसिंह देव द्वारा बनवाया गया था। मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है। मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं सदी के चित्र बने हुए हैं। चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं जैसे वह अभी ही बने हों।
मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी हुई हैं। राज महल के निकट स्थित चतुभरुज मंदिर ओरछा का मुख्य आकर्षण है। यह मंदिर चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1558 से 1573 के बीच राजा मधुकर ने करवाया था। मंदिर में प्रार्थना के लिए लंबा-चौड़ा हॉल है जहां कृष्ण भक्त जमा होते हैं।
फूलबाग-
बुन्देल राजाओं द्वारा बनवाया गया यह फूलों का बगीचा चारों ओर से दीवारों से घिरा है। पालकी महल के निकट स्थित यह बाग बुन्देल राजाओं का आरामगाह था। वर्तमान में यह पिकनिक स्थल के रूप में जाना जाता है।
फूलबाग में एक भूमिगत महल और आठ स्तम्भों वाला मंडप है। यहां के चंदन कटोर से गिरता पानी झरने के समान प्रतीत होता है। इस महल को राजा जुझार सिंह के पुत्र धुरभजन ने बनवाया था।
राजकुमार धुरभजन को एक मुस्लिम लड़की से प्रेम था। उन्होंने उससे विवाह कर इस्लाम धर्म अभिग्रहण कर लिया। धीरे-धीरे उन्होंने शाही जीवन त्याग दिया और स्वयं को ध्यान और भक्ति में लीन कर लिया। विवाह के बाद उन्होंने सुन्दर महल त्याग दिया। धुरभजन की मृत्यु के बाद उन्हें संत के रूप में जाना गया। वर्तमान में यह महल काफी क्षतिग्रस्त हो चुका है।
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