Padmavati Karni Sena Karni Sena burn poster Jaipur 1506234129

चित्तौड़गढ़ के इतिहास में आज भी अमर है महारानी पद्मावती का अदम्य साहस

भारत के इतिहास में दफ़न 1303 का वो साल था, जब दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश के दूसरे शासक अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ़ पर कब्जा किया था। आज 700 साल बाद भी खिलजी की ‘क्रूरता’ और चित्तौडगढ़ की रानी पद्मावति के अदम्य साहस की कहानी सुनते ही दिल सिहर उठता है।

padmawati

 

पढ़ें: जानिए वो वजह जिसके कारण रानी लक्ष्मी बाई को देख सका था केवल एक ही अंग्रेज़

चित्तौड़गढ़ पर खिलजी की कूच की वजह रानी पद्मावति थी। अवधी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखे पद्मावत में इसका वर्णन है। रानी को पाने की चाह मन में लिए खिलजी ने 1303 में चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई कर दी। वह भारी लाव लश्कर लिए चित्तौडगढ़ किले के बाहर डट गया। चित्तौड़ के महाराणा रतन सिंह को जब दिल्ली से खिलजी की सेना के कूच होने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपने भाई-बेटों को दुर्ग की रक्षा के लिए इकट्ठा किया। समस्त मेवाड़ और आस-पास के क्षत्रों में रतन सिंह ने खिलजी का मुकाबला करने की तैयारी की। किले की सुद्रढ़ता और राजपूत सैनिको की वीरता और तत्परता से 6 माह तक अलाउद्दीन अपने उदेश्य में सफल नहीं हो सका और उसके हजारों सैनिक मारे गए।

khilji

 

अतः उसने योजना बनाकर महाराणा रतन सिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा और कहलवाया कि मैं मित्रता का इच्छुक हूं। महारानी पद्मावति की मैंने बड़ी तारीफ सुनी है, सिर्फ उनके दर्शन करना चाहता हूं। कुछ गिने चुने सिपाहियों के साथ एक मित्र के नाते चित्तौड़ के दुर्ग में आना चाहता हूं। इससे मेरी बात भी रह जायेगी और आपकी भी। महाराणा रतन सिंह उसकी चाल के झांसे में आ गए। 200 सैनिकों के साथ खिलजी दुर्ग में आ गया। महाराणा ने अतिथि के नाते खिलजी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय खिलजी को किले के प्रथम द्वार तक पहुंचाने आ गए। धूर्त खिलजी मीठी-मीठी प्रेम भरी बातें करता-करता महाराणा को अपने पड़ाव तक ले आया और मौका देख बंदी बना लिया।

 

पढ़ें: आइये जानते हैं भारत के ऐसे महानतम ज्योतिषाचार्य के बारे में, जिन्होंने पूरी दुनिया को अचरज में डाल दिया

chittodgadh fort
चित्तौड़गढ़ किला

राजपूत सैनिकों ने महाराणा रतन सिंह को छुड़ाने के लिए बड़े प्रयत्न किए लेकिन वह असफल रहे और अलाउद्दीन ने बार-बार यही कहलवाया कि रानी पद्मावति हमारे पड़ाव में आएंगी तभी हम महाराणा रतन सिंह को मुक्त करेंगे अन्यथा नहीं। रानी पद्मावती ने भी खिलजी की ही तरह युक्ति सोची और कहलाया कि वह इसी शर्त पर आपके पड़ाव में आ सकती है जब पहले उसे महाराणा से मिलने दिया जाए और उसके साथ उसकी दासियों का पूरा काफिला भी आने दिया जाए। इस प्रस्ताव को खिलजी ने स्वीकार कर लिया।

पढ़ें: क्षत्रिय परिवार में पले “भाई लहरी” कैसे बन गए सिक्खी के दूसरे गुरु “अंगद देव” : जन्मदिन विशेष

योजनानुसार रानी पद्मावति की पालकी में उसकी जगह स्वयं उनका खास काका गोरा बैठा और दासियों की जगह पालकियों में सशत्र राजपूत सैनिक बैठे। पालकियों को उठाने वाले कहारों की जगह भी वस्त्रों में शस्त्र छुपाए राजपूत योद्धा ही थे। खिलजी के आदेशानुसार पालकियों को राणा रतन सिंह के शिविर तक बेरोकटोक जाने दिया गया और पालकियां सीधी रतन सिंह के तंबू के पास पहुंच गई।

वहां इसी हलचल के बीच राणा रतन सिंह को अश्वारूढ़ कर किले की और रवाना कर दिया गया और बनावटी कहार और पालकियों में बैठे योद्धा पालकियां फेंक खिलजी की सेना पर भूखे शेरों की तरह टूट पड़े। अचानक अप्रत्याशित हमले से खिलजी की सेना में भगदड़ मच गई और गोरा अपने प्रमुख साथियों सहित किले में वापस आने में सफल रहा।

chittorgarh7
खिलजी सेना का कत्लेआम करते हुए राजपूत सैनिक

 

पढ़ें:एक ऐसा राजा जिसने हँसते हँसते चूम लिया फांसी का फंदा

महाराणा रतन सिंह भी किले में पहुच गए। छह माह के लगातार घेरे के चलते दुर्ग में खाद्य सामग्री की भी कमी हो गई थी। इससे घिरे हुए राजपूत तंग आ चुके थे।अतः जौहर और शाका करने का निर्णय लिया गया। गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया। पद्मावति के नेतृत्व में लगभग 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने संबंधियों को अंतिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश कर अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।

chittorgarh8
पद्मावति के नेतृत्व में राजपूत रमणियों द्वारा किया गया जौहर

छह माह और सात दिन के खूनी संघर्ष के बाद विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तौड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरुष, स्त्री या बालक जीवित नहीं मिला जो यह बता सके कि आखिर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सकें। उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला। रानी पद्मावती द्वारा किया गया जौहर इतिहास के सुनहरे पन्नो में हमेशा याद रखा जायेगा।

10 thoughts on “चित्तौड़गढ़ के इतिहास में आज भी अमर है महारानी पद्मावती का अदम्य साहस”

  1. Hello there! This post could not be written any better! Reading this post reminds me of my old room mate! He always kept chatting about this. I will forward this write-up to him. Pretty sure he will have a good read. Thanks for sharing!

  2. Aw, this was a really nice post. In idea I would like to put in writing like this additionally – taking time and precise effort to make an excellent article… but what can I say… I procrastinate alot and certainly not appear to get something done.

  3. hello there and thanks for your information – I’ve certainly picked up something new from proper here. I did however experience some technical points the use of this site, as I experienced to reload the web site a lot of times previous to I could get it to load properly. I have been thinking about in case your web hosting is OK? Not that I’m complaining, however slow loading cases times will sometimes have an effect on your placement in google and could damage your high quality rating if ads and ***********|advertising|advertising|advertising and *********** with Adwords. Anyway I am adding this RSS to my e-mail and can look out for much more of your respective interesting content. Ensure that you update this once more soon..

Comments are closed.