नाना साहेब का जन्म सन 1824 में वेणुग्राम निवासी माधवनारायण राव के घर में हुआ था। इनके पिता जी पेशवा बाजीराव द्वतीय के सगोत्र भाई थे। पेशवा ने बालक नानाराव को अपना दत्तक पुत्र स्वीकार किया और उनकी शिक्षा दीक्षा का प्रबंध किया। उन्हें हाथी घोड़े की सवारी, तलवार व बंदूक चलाने की विधि सिखाई गई और कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान भी कराया गया। नाना साहेब पेशवा सन् 1857 के भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार थे। स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहेब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोहियों का नेतृत्व किया था।
1857 ग़दर के हीरो थे नाना साहेब-
1857 में जब मेरठ में क्रांति की शुरुवात हुई तो नाना साहेब ने बड़ी वीरता और दक्षता से क्रांति की सेनाओं का कभी गुप्त रूप से और कभी प्रकट रूप से नेतृत्व किया। क्रांति प्रारंभ होते ही उनके अनुयायियों ने अंग्रेजी खजाने से साढ़े आठ लाख रुपया और कुछ युद्धसामग्री प्राप्त की। कानपुर के अंग्रेज एक गढ़ में कैद हो गए और क्रांतिकारियों ने वहाँ पर भारतीय ध्वजा फहराई।
जब अंग्रेज अफसर ने रोक दी नाना की पेंशन-
अंग्रेज अफसर डलहौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद नाना साहब को 8 लाख की पेन्शन से वंचित कर, उन्हें अंग्रेज़ी राज्य का शत्रु बना दिया था। नाना साहेब ने जब इस अन्याय की फरियाद को देशभक्त अजीम उल्लाह ख़ाँ के माध्यम से इंग्लैण्ड की सरकार तक पहुँचाया, तो वहा से भी उन्हें निराशा हाथ लगी उसके बाद नाना और अजीम दोनों ही अंग्रेज़ी राज्य के विरोधी हो गये और भारत से अंग्रेज़ी राज्य को उखाड़ फेंकने के प्रयास में लग गये। 1857 में भारत के विदेशी राज्य के उन्मूलनार्थ, जो स्वतंत्रता संग्राम का विस्फोट हुआ था, उसमें नाना साहेब का विशेष उल्लेखनीय योगदान रहा था।
यह भी पढें: चित्तौड़गढ़ के इतिहास में आज भी अमर है महारानी पद्मावती का अदम्य साहस
20 साल तक मराठा साम्राज्य पर किया शासन-
नाना साहेब के दो भाई थे रघुनाथराव और जनार्दन. रघुनाथराव ने अंग्रेज़ों से हाथ मिलकर मराठाओं को धोखा दिया, जबकि जनार्दन की अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी थी. नाना साहेब ने 20 वर्ष (1740 से 1761) तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया।
नाना के बेटे की मृत्यु-
1761 में, पानीपत की तीसरी लड़ाई में अफगानिस्तान के एक महान योद्धा अहमदशाह अब्दाली के खिलाफ मराठाओं की हार हुई. मराठों ने उत्तर में अपनी शक्ति और मुगल शासन बचाने की कोशिश की। लड़ाई में नानासाहेब के चचेरे भाई सदाशिवराव भाऊ (चिमाजी अप्पा के पुत्र), और उनके सबसे बड़े पुत्र विश्वासराव मारे गए थे। उनके बेटे और चचेरे भाई की अकाल मृत्यु उनके लिए एक गंभीर झटका थी।
नाना की मृत्यु-
नाना के बेटे के बाद नाना साहेब भी ज़्यादा समय के लिए जीवित नहीं रहे। जिस समय नाना साहब नेपाल स्थित ‘देवखारी’ नावक गांव में, दल-बल सहित पड़ाव ड़ाले हुए थे, वह भयंकर रूप से बुख़ार से पीड़ित हो गए और केवल 34 वर्ष की अवस्था में 6 अक्टूबर, 1858 को मृत्यु की गोद में समां गये। उनका दूसरा बेटा माधवराव पेशवा उनकी मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा.
Yay google is my king aided me to find this outstanding site! .
I like the efforts you have put in this, thank you for all the great posts.
Its like you read my thoughts! You seem to understand so much about this, like you wrote the e-book in it or something. I believe that you simply can do with a few p.c. to drive the message home a bit, however instead of that, this is wonderful blog. An excellent read. I’ll certainly be back.
Your article helped me a lot, is there any more related content? Thanks!
I always was interested in this topic and still am, thanks for posting.