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जानिए एक ऐसी महिला के बारे में जो 75 साल की उम्र में भी चलातीं है तलवार

किसी के लिए भी यह उम्‍मीद करना काफी मुश्किल होगा कि 76 साल की उम्र में कोई महिला आज भी लाठी, तलवार और भाला थामे मैदान में डटी हुई हैं। एक ऐसी महिला जो अपने हुनर से विरोधियों को मिनटों में ही चित्‍त कर देती है। जी हां, यह कोई सपना बल्कि हकीकत है।

यहां हम बात कर रहे हैं केरल की मीनाक्षी अम्मा की जो उम्र को मात देकर आज भी अच्छे-अच्छों को चित्‍त करने का जज्बा रखती हैं। वह 76 साल की उम्र में भी पूरी तरह से फिट हैं। इन्हें मार्शल आर्ट्स और सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देते देखकर हर कोई दंग रह जाता है। केरल के वाटकरा की रहने वाली मीनाक्षी अम्मा पारंपरिक युद्धकला कलारीपयट्टू की विशेषज्ञ हैं और पिछले 6 दशकों से इस कला की प्रैक्टिस कर रही हैं।

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कलारीपयट्टू विश्व की पुरानी युद्धकलाओं में से एक है। कलारीपयट्टू दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला कलारी जिसका मतलब स्कूल या व्यायामशाला है। वहीं दूसरे शब्द पयट्टू का मतलब होता है युद्ध या व्यायाम के लिए “कड़ी मेहनत करना”।

मीनाक्षी अम्मा और उनके हुनर को सबसे पहले पहचान उस समय मिली, जब कलारीपयट्ट के खेल में अपने से करीब आधी उम्र के एक पुरुष के साथ लोहा लेते और उस पर भारी पड़ते उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। उनके इस वीडियो ने कई लोगों को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर दिया और इस वीडियो को ढेरों लाइक्स और कमेंट्स मिले थे।

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प्राचीन कहानियों में ऐसा बताया जाता है कि कलारीपयट्टू युद्धकला परशुराम के द्वारा शुरू की गयी थी. इस कला में मनुष्य को शरीर और मन दोनों से मजबूत किया जाता है। कलारीपयट्टू का मूल उद्देश्य आत्मरक्षा है।

कलारीपयट्टू मार्शल आर्ट्स से काफी मिलता-जुलता है. इसका प्रदर्शन लाठी, तलवार और भाले की सहायता से किया जाता है. इस युद्धकला में काफी समर्पण, अनुशासन और प्रतिबद्धता की आवश्‍यकता होती है।

भारत में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक से लेकर विदेशों में श्रीलंका और मलेशिया तक इस युद्धकला का प्रदर्शन होता है।

मीनाक्षी अम्मा कहती हैं कि कलारीपयट्ट ने उनकी जिंदगी को हर प्रकार से प्रभावित किया है और अब जब वह करीब 75 साल की होने जा रही हैं, इस उम्र में भी वह इसका निरंतर अभ्यास करती हैं।

मीनाक्षी अम्मा कहती हैं, आज जब लड़कियों के देर रात घर से बाहर निकलने को सुरक्षित नहीं समझा जाता और इस पर सौ सवाल खड़े किए जाते हैं, कलारीपयट्ट ने उनमें इतना आत्मविश्वास पैदा कर दिया है कि उन्हें देर रात भी घर से बाहर निकलने में किसी प्रकार की झिझक या डर महसूस नहीं होता।

मीनाक्षी अम्मा मानती हैं कि आज के दौर में लड़कियों के लिए मार्शल आर्ट और भी ज्यादा जरूरी हो गया है. वह कहती हैं, “मार्शल आर्ट से लड़कियों में आत्मविश्वास पैदा होता है. हर सुबह इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने से केवल आत्मविश्वास और शारीरिक मजबूती ही नहीं, बल्कि रोजमर्रा की मुश्किलों से लड़ने के लिए मानसिक बल भी मिलता है.”

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मीनाक्षी अम्मा को प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

पद्मश्री मिलने के सवाल पर मीनाक्षी अम्मा कहती हैं, मैं यह नहीं कह सकती कि पद्म पुरस्कार जीतना मेरा सपना पूरे होने जैसा है, क्योंकि कभी भी मेरे दिल या दिमाग में ऐसा कोई पुरस्कार जीतने का कोई ख्याल नहीं आया. वह इसका श्रेय अपने दिवंगत पति राघव मास्टर को देती हैं, जो उन्हें कलारीपयट्ट सिखाने वाले उनके गुरु भी थे।

मीनाक्षी अम्मा के पति राघव मास्टर भी कलारीपयट्टू के एक्सपर्ट माने जाते थे. दोनों ने मिलकर इस युद्धकला के लिए बहुत काम किया है। राघव मास्टर अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके सपनों को आज भी मीनाक्षी अम्मा साकार कर रही हैं।

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