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जस्टिस नरीमन ने कहा कि इस्लाम में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह है, तलाक के खिलाफ थे पैगम्बर

तीन तलाक के महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ के तीन जजों ने इसे असंवैधानिक बताया है। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस फली नरीमन, जस्टिस जोसेफ कुरियन ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए कहा- इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होता है।

जबकि इससे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रक्रिया और भावनाओं से जुड़ा मामला है, इसलिए इसे एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता।

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जस्टिस नरीमन ने कहा कि इस्लाम में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह है और इसे निश्चित परिस्थितियों में ही खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘यह आश्चर्यजनक है कि एक साथ तीन तलाक की प्रक्रिया में किसी धार्मिक रस्म का आयोजन नहीं किया जाता और न ही इसमें तय समयसीमा और प्रक्रिया का पालन किया जाता है।’

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में पैगम्बर मोहम्मद ने तलाक को खुद की नजर में जायज चीजों में सबसे नापंसद किया जाने वाला कदम घोषित किया था। तलाक से पारिवारिक जीवन की बुनियाद शादी टूट जाती है।

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जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘निश्चित तौर पर पैगम्बर मोहम्मद के समय से पहले बुतपरस्त अरब में लोग पत्नी को सिर्फ रंग के आधार पर भी छोड़ने को आजाद थे। लेकिन, इस्लाम के प्रवर्तन के बाद पुरुषों के लिए तलाक लेना तभी संभव था, जब उसकी पत्नी उसकी बात न मानती हो या फिर चरित्रहीन हो, जिसके चलते शादी को जारी रख पाना संभव न हो।’

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिमों में एक बार में तीन तलाक की प्रथा ‘अमान्य’, ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है। शीर्ष अदालत ने 3:2 के बहुमत से सुनाए गए फैसले में तीन तलाक को कुरआन के मूल तत्व के खिलाफ बताते हुए इसे खारिज कर दिया।

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