इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको एक ऐसा सच बताने जा रहे है पता नहीं इस सच से कितने लोग परिचित हैं या नहीं। आज हम बात कर रहे है प. बंगाल में घटती हिन्दू जनसख्यां और उन पर हो रहे ममता सरकार में अत्याचार के बारे में। बंगाल में आज 38,000 गांवों में से 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि उन गाँव में आपको एक भी हिन्दू नहीं मिलेगा, दूसरी भाषा में कहें तो हिन्दुओं को वहां से भगा दिया गया है।
हालांकि कुछ समाचार पत्रों में भी यह समाचार विस्तार से छपा था, फिर भी हम पता नहीं कब जागेंगे। जबकि यह सर्व विदित है कि बंगलादेश से आए मुस्लिमो ने प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर वहां के गांवों के हिन्दुओं को भगा रहे हैं। हिन्दू डर की बजह से अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं। इसलिए इन इलाकों में आज स्थिति यह है कि गांव हिन्दूविहीन हो रहे हैं और शहर मुस्लिम बहुल गांवों से घिरते जा रहे हैं। एकदम वही स्थिति जिसकी चर्चा अन्तरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट नेता जिन पियाओ ने की थी, “गांव द्वारा शहरों को घेरो।” उसी नीति को अपनाकर भारत की भूमि पर एक और “इस्लामिस्तान” बनाने की तैयारियां चल रही हैं।
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प. बंगाल के आज दस लोकसभा क्षेत्रों यानी 70 विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति यह हो गई है कि मुसलमान जिसे चाहेंगे, वही चुनाव जीतेगा। और हाल के लोकसभा चुनावों में ऐसा हुआ भी है, उन्होंने जिसे चाहा वही चुनाव जीता। यह बात सभी राजनीतिक दल जानते हैं, मगर इसके बारे में उनके नेता कुछ नहीं कहते। नेता डरते हैं कि यदि हम इन विषयों पर कुछ कहेंगे तो लोग हम पर “सांप्रदायिकता” की मुहर लगा देंगे। इसलिए भले ही मार डालो, मंजूर है। पर साम्प्रदायिक मत कहो। देश डूबता है तो डूबने दो- देश का ठेका केवल हम ही ने ले रखा है क्या? इस सोच का मुसलमानों ने भरपूर फायदा उठाया है। पहले कहा जाता था कि सन् 1971 के युद्ध के बाद जन्मे बंगलादेश ने भारत के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाने का तरीका यह अपनाया कि उसने भारत में ढाई करोड़ घुसपैठिए भेज दिए। अब सरकारी आंकड़ों में भी यह स्वीकार किया जाता है।
एक सरकारी रपट के अनुसार सन् 1951 में भारत की कुल जनसंख्या में मुसलमान 9.9 प्रतिशत, सन् 1971 में 10.8 प्रतिशत तथा सन् 11981 में 11.3 प्रतिशत थे। मुसलमानों की संख्या सन् 1991 में बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गयी। साधारणत: ये आंकड़े उतने डरावने नहीं हैं, पर उन्हें क्षेत्र विशेष के रूप में देखें तो खतरा महसूस होता है। कई क्षेत्रों में मुसलमानों की जनसंख्या बहुत अधिक हो गई है। जैसे असम में मुसलमानों की जनसंख्या 28 प्रतिशत और प. बंगाल में 25 प्रतिशत है। प. बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले में मुसलमानों की जनसंख्या 56प्रतिशत है। इसी तरह नादिया जिले में 48 प्रतिशत, मुर्शिदाबाद जिले में 52 प्रतिशत, मालदा जिले में 54 प्रतिशत और पश्चिम दिनाजपुर जिले की इस्लामपुर तहसील में मुसलमानों की संख्या 60 प्रतिशत है। इस रपट में यह भी कहा गया है कि उत्तर 24 परगना जिले से लेकर पश्चिम दिनाजपुर जिले तक मुस्लिम आबादी 2,73,37,362 है और यदि इसमें बिहार के किशनगंज जिले, जिसकी जनसंख्या 9,86,772 है, को मिला दिया जाए तो इस पूरे क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या अच्छी-खासी हो जाती है। यह वही क्षेत्र है, जिसे इस्लामिस्तान बनाने का प्रयास चल रहा है। इसके अन्दर प. बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना, मुर्शिदाबाद, मालदा, नादिया व पश्चिम दिनाजपुर जिले एवं बिहार का किशनगंज जिला होगा।
मुसलमानों के साथ कम्युनिस्टों का एक साथ चलना तथा भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करना पुरानी बात है। कम्युनिस्टों ने कांग्रेस की तरह पाकिस्तान का समर्थन किया तथा ब्रिटिश सरकार से हाथ मिलाकर पाकिस्तान के पक्ष में जनमत तैयार करने का प्रयास किया। पूरा बंगाल पाकिस्तान बने, इसका भी समर्थन कम्युनिस्टों ने किया था। इसलिए, मि. जिन्ना को जब आधा-अधूरा पाकिस्तान मिला तब मुसलमानों के साथ-साथ कम्युनिस्टों ने भी यह क्षतिपूर्ति करने की शपथ ली थी। यही कारण है कि कम्युनिस्ट आज भी उनकी “हां” में “हां” मिलाते हैं। इस्लामी आतंकवादी प. बंगाल को एक गलियारा बनाकर उसे अपने साथियों को नेपाल, भूटान, थाईलैंड आदि स्थानों पर भेजने के लिए इस्तेमाल करते हैं। पर राज्य सरकार चुप है, जैसे कि उसे कुछ पता ही नहीं हो।
एक तरह से कम्युनिस्टों ने मुसलमानों के लिए अपनी जान हाजिर कर दी है। 1977 में जब कम्युनिस्ट यहां सत्ता में आए थे, उस समय राज्य में 238 मदरसे थे। उन मदरसों के लिए राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार 5 करोड़ 20 लाख रुपए वार्षिक खर्च करती थी। 2001 में यहां मदरसों की संख्या 506 हो गयी यानी 1977 की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा। वाम सरकार इन मदरसों पर वार्षिक 115 करोड़ रुपए खर्च करती है। इसके अलावा पूरे राज्य में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए अनगिनत विकास प्रकल्प बनाए गए। “पश्चिम बंग अल्पसंख्यक विकास वित्त निगम” के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा था, “मदरसों में जितने भी शिक्षक व शिक्षार्थी हैं, उनका संपूर्ण खर्च राज्य सरकार देती है। अन्य किसी राज्य में मदरसों के लिए इतना खर्च नहीं होता है।”
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पर जब गुप्तचर विभाग से यह समाचार मिला कि राज्य के सीमावर्ती जिलों के अनेक मदरसों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है तो बुद्धदेव भट्टाचार्य एकदम बौखला गए। उन्होंने कहा कि इन केन्द्रों को कुचल देंगे। दिल्ली जाकर उन्होंने तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री को रपट भी दी। परंतु उनको शायद तब तक यह पता नहीं था कि कम्युनिस्ट पार्टी इस विषय में क्या कहती है। पार्टी के दफ्तर में बुलाकर बुद्धदेव भट्टाचार्य को डांटा गया तथा बताया गया कि इस विषय में पार्टी की नीति क्या है। दूसरे ही दिन बुद्धदेव सफाई देने लगे। इन सारी बातों को जानते हुए भी आम जनता कुछ कह नहीं पा रही, क्योंकि वामपंथियों के डर ने उनको एक तरह से अपाहिज बना दिया है।
स्रोत- पांचजन्य