सुन्नी मुस्लिम देशों में सबसे पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय : अहमदिया
अहमदिया समुदाय के लोग हनफी इस्लामिक कानून का पालन करते हैं। इसकी शुरुआत हिंदुस्तान में मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने की थी। इनके मिर्ज़ा गुलाम अहमद एक नबी यानी खुदा के दूत थे। जबकि इस्लाम के ज़्यादातर फिरके मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर मानते हैं।
इसके चलते ही अहमदिया संप्रदाय के लोग बाकी मुस्लिमों के निशाने पर आ जाते हैं। वैसे अहमदिया मुस्लिमों का कहना ये भी है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने अपनी कोई शरीयत नहीं दी बल्कि मोहम्मद साहब की ही शिक्षाओं को फैलाया, लेकिन वो खुद भी एक नबी का दर्जा रखते थे।
बटवारे ने पकिस्तान में उन्हें कट्टरपंथियों के निशाने पर ला दिया :
हिंदुस्तान के बटवारे के बाद से इसी फर्क के चलते अहमदिया समुदाय पाकिस्तान में दूसरे दर्जे का नागरिक बना हुआ है। वो अपनी इबादतगाह को मस्जिद नहीं कह सकते हैं। उनके सार्वजनिक रूप से कुरान की आयतें पढ़ने और हज करने पर भी पाबंदी है। सुन्नी मुस्लिम देश पाकिस्तान में उसे मुस्लमान मना ही नहीं जाता और इनकी हालत शिया समुदाय से भी अधिक ख़राब है!
यही नहीं, अगर कोई अहमदिया अस्सलाम वालेकुम से किसी का अभिवादन कर दे तो उसे जेल में डाल दिया जाएगा। पाकिस्तान में जैसे-जैसे चरमपंथ बढ़ा है इन लोगों पर होने वाले हमले भी बढ़े हैं।
पिछले कुछ सालों में कई अहमदिया मस्जिदों पर हमला हुआ है । जिनमें कई लोग मारे गए हैं। इसी साल मार्च में अब्दुस सलाम के भाई मलिक सलीम लतीफ की गोली मार कर हत्या कर दी गई। उनकी गलती थी कि उन्होंने साल भर के आंकड़े पेश करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में अहमदियों पर जुल्म हो रहा है। इस रिपोर्ट को पेश करने के अगले दिन ही मलिक की हत्या कर दी गई।
अहमदिया लोग अलग ही त्रासदी का शिकार हैं। एक मुस्लिम देश में ही वे मुस्लिम नहीं बल्कि अल्पसंख्यक का जीवन जी रहे हैं, जिस देश में इस्लामिक रीतिरिवाज न मानने पर हत्या कर दी जाती हो, वहां इन्हें इस्लाम को मानने पर मार डाला जाता है।
नोबल पुरुस्कार विजेता अब्दुल सलाम को नहीं मना पाकिस्तानी :
पिछले सत्तर सालों में पाकिस्तान को विज्ञान में सिर्फ एक नोबेल पुरस्कार मिला है। अब्दुस सलाम दुनिया के पहले पाकिस्तानी और मुस्लिम नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। 1979 की क्वांटम फिज़िक्स की ‘इलेक्ट्रॉनिक यूनिफिकेशन थ्योरी’ के लिए उन्हें ये सम्मान मिला।
1996 में सलाम का इंतकाल हो गया। कब्र पर लिखा गया ‘पाकिस्तान के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता’। स्थानीय स्तर पर इसका विरोध शुरू हो गया। अंत में अदालत के आदेश पर कब्र का पत्थर उखाड़ दिया गया। पाकिस्तान सरकार ने अपने स्कूली स्लेबस से विज्ञान में अपनी इकलौती उपलब्धि से जुड़ी हर बात हटा दी ! 2016 में नवाज शरीफ ने इस शर्मनाक गलती को सुधारा।
इन सबके पीछे एक ही कारण था, अब्दुस सलाम अहमदिया मुसलमान थे। अगर ये लेख पाकिस्तान में लिखा जा रहा होता तो अहमदिया के आगे मुसलमान नहीं लिखा जा सकता था।