भारतीय सेना अपनी धरती से लेकर विदेश तक हर मोर्चे पर खुद को साबित करती आयी है. सेना में शामिल एक-एक जवान की वीरता की अलग कहानी है. सिर्फ आज़ादी के बाद ही नहीं, उससे पहले भी ब्रिटिश शासन के दौरान भी.
पढ़िए एक ऐसे ही जवान की कहानी, जिसके पराक्रम से प्रभावित होकर अंग्रेज़ शासन से उसे वीरता के अपने सर्वोच्च पुरस्कार से नवाज़ा
बात दूसरे विश्व युद्ध की है, जब भारतीय जवान ब्रिटेन की ओर से जर्मन सेना से युद्ध लड़ रहे थे. उन सैनिकों में 19 साल का युवा सिपाही था, जिसका नाम कमल राम था. 12 मई 1944 का दिन था, बिट्रिश इंडियन आर्मी इटली की गारी नदी के पास जर्मनी से सीधी लड़ाई लड़ रही थी. नदी पार करने के बाद अचानक जर्मनी की ओर से एक साथ चार चौकियों से भारी गोलीबारी हुई.
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इस कारण ब्रिटिश-भारतीय सेना आगे नहीं बढ़ी. तत्कालीन कंपनी कमांडर ने दुश्मन की दायीं चौकी पर हमले के लिए खुद से किसी एक सिपाही को आने के लिए कहा. वीरता का परिचय देते हुए कमल आगे आए.उन्होंने रेंगते हुए तारों के बीच में से निकलकर अकेले ही शत्रु की चौकी पर हमला किया. इस दौरान उन्होंने मशीन गन चला रहे सैनिक को मौत के घाट उतारा. इसके बाद एक दूसरे जर्मन ने पीछे से उनका हथियार छीनने की कोशिश की.
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कमल राम ने उसे भी तुरंत मौत के घाट उतार दिया. इतना होते देख एक जर्मन अफसर हाथ में पिस्तौल लिए बैरक से बाहर निकाला, जब तक वो हमला कर पाता कमल राम ने उसे भी मार दिया. इसके बाद अपने अदम्य साहस के बूते कमल राम ने एक के बाद एक तीन चौकियों को नष्ट कर दिया.
सिपाही कमल राम की वीरता का सम्मान करते हुए अंग्रेज़ी सरकार ने उन्हें ब्रिटेन के सबसे ऊंचे विक्टोरिया क्रॉस मेडल से नवाज़ा. साल 1944 में उन्हें इस मेडल से खुद जॉर्ज नवाज़ पंचम ने इटली में नवाज़ा. इस वीरता के कारण उन्हें प्रमोट करके सिपाही से सूबेदार के पद दिया गया.
source: news18
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