किस प्रकार जातिवाद के बोझ तले उभरती हुई प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं…
देश के गिरे हुए खेल स्तर की सच्चाई को दर्शाती हुई फिल्म “मुक्काबाज” आजकल सिनेमा हॉल में चल रही है. इस फिल्म को निर्देशित किया है अनुराग कश्यप ने। जी हाँ वही अनुराग कश्यप जिनका नाम सामने आते ही आपके जहन में गुलाल और गैंग्स ऑफ़ बासेपुर जैसी फिल्मे घूमने लगती हैं..
इस फिल्म में जमीनी हकीकत और तथ्यों के आधार पर चीजें परोसी गई हैं. कुछ ऐसी हकीकत जो फिल्म देखने के बाद आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी कि किस तरह हमारे देश में प्रतिभाओं का गला घोंट दिया जाता है।
यह भी पढ़ें: हिमालय के ‘विकिपीडिया’ है ये साधू, अब तक खींच चुके हैं 8 क्विंटल तस्वीरें
ये फिल्म आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि जब विदेशी हम पर कटाक्ष करते हैं हमारे देश का मजाक उड़ाते हैं कि कैसे 130 करोड़ जनसँख्या वाला भारत 3 गोल्ड मैडल नही ला पाता। आखिर कहाँ कमी रह जाती है, क्या हमारे देश में प्रतिभाओं का अकाल है? हमारे देश में खेलों में राजनीती और जातिवाद किस तरह हावी है ये सब इस फिल्म में बहुत ही सुन्दर तरीके से दिखाया गया है।
मुक्काबाज की कहानी-
मुक्काबाज उत्तर प्रदेश की प्रष्ठभूमि पर बनी हुई है और इस फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के बरेली शहर से शुरू होती है, जहां के दबंग नेता भगवान दास मिश्रा (जिमी शेरगिल) हैं और मिश्रा जी की मर्जी के बिना वहां पत्ता भी नही हिलता। अगर किसी खिलाडी को बॉक्सिंग के अगले लेवल तक जाना है तो उसका रास्ता भगवान दास मिश्रा से होकर ही जाता है।
श्रवण कुमार सिंह (विनीत कुमार सिंह) भी भगवान दास के लिए शिष्य की तरह काम करता है, लेकिन एक दिन ऐसा आता है जब श्रवण को लगता है कि बॉक्सिंग की जगह उसका शोषण किया जा रहा है, जिसकी वजह से वो भगवान दास से बगावत करके अपने हुनर को आगे ले जाने का प्रयास करने लगता है।
यह भी पढ़ें: जानिए प्राचीन काल में कितना विशाल था भारत, कहाँ तक फैली थी भारतीय संस्कृति
फिल्म की कहानी में भगवान दास की भतीजी सुनैना मिश्रा (जोया हुसैन) की भी एंट्री होती है. उसी समय श्रवण को उससे प्यार हो जाता है. भगवान दास को श्रवण कुमार से सख्त नफरत है और वो किसी भी कीमत पर श्रवण को मुक्काबाज नहीं बनने देने के लिए प्रण लेता है. बहुत सारी बाधाओं का सामना करते हुए श्रवण बरेली से वाराणसी पहुंचता है. वहां उसकी मुलाकात कोच संजय कुमार (रवि किशन) से होती है. अब क्या श्रवण मुक्काबाज बन पाएगा? क्या उसकी शादी सुनैना से हो पाएगी? इन सब सवालों का जवाब आपको फिल्म देखकर ही मिलेगा।
क्यों देखें?
फिल्म की कहानी आज की हकीकत को बयां करती है। साथ ही एक प्रेम प्रसंग के साथ साथ यह फिल्म जातीय दंगों, खेल और पॉलिटिक्स का झोलझाल और सरकारी नौकरी, स्पोर्ट्स कोटा के ताना-बाना को भी दर्शाती है।
फिल्म की लिखावट कमाल की है. फिल्म के संवाद और कुछ सीन्स बड़े ही कमाल के हैं. डायलॉग्स आपको एक समय पर हंसाने के साथ-साथ सोचने पर विवश भी करते हैं.
एक अच्छे खिलाड़ी को किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, ये भी इस फिल्म के जरिए दर्शाने की कोशिश की गई है।