रोहतास जिला से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है रोहतास गढ़ का किला। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग 200 साल से पहले इस रोहतास गढ़ का किला देखने आए थे।
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सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र व राजा सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था।
बहुत दिनों तक यह हिन्दू राजाओं के अधिकार में रहा, लेकिन 16वीं सदी में मुसलमानों के अधिकार में चला गया और अनेक वर्षों तक उनके अधीन रहा। इतिहासकारों की मानें तो किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कराया था, ताकि कोई किले पर हमला न कर सके।
बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यही से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था। कहा जाता है कि आज तक कोई भी इस किले पर हमला नहीं कर पाया।
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ये किला काफी भव्य है। किले का घेरा 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं, जिनमें मुख्य चारा घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है।
रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है।
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दो हजार फीट की उंचाई पर स्थित इस किले के बारे में कहा जाता है कि कभी इस किले की दीवारों से खून टपकता था। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग दो सौ साल पहले रोहतास की यात्रा की थी।
तब उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज में की थी। उन्होंने कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास रहने वाले लोग भी इसे सच मानते हैं।
वे तो ये भी कहते हैं कि बहुत पहले रात में इस किले से आवाज भी आती थी। लोगों का मानना है कि वो संभवत: राजा रोहिताश्व के आत्मा की आवाज थी। इस आवाज को सुनकर हर कोई डर जाता था।
हालांकि, किले से आने वाली आवाज और दीवारों से खून निकलने की बात अंधविश्वास है या सच- ये रहस्य तो इतिहास के गर्त में ही छिपा है।