सनातन धर्म में किसी भी शुभ काम का आरंभ भगवान गणेश के पूजन से आरंभ होता है। समस्त भारत में शायद ही काेई ऐसा व्यक्ति हाे जाे भगवान गणेश के बारे में न जानता हाे फिर चाहे उनका मनमाेहक बाल स्वरूप या माता-पिता काे समर्पित युवा स्वरूप अथवा ज्ञान के भण्डार से भरा उनका अलाैकिक स्वरूप ही क्याें न हाे। हिन्दू मान्यताआें के अनुसार गणेश यानि कि गण+ईश = गणाें के देवता भगवान शिव एवं माता पार्वती के पुत्र के सुगन्धित द्रव्याें के साथ निर्मित किया था।
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हम सब ये ताे भली प्रकार से जानते हैं कि किस तरह गणेश जी का मस्तक उन्हीं के पिता शिव के द्वारा काटा गया फिर एक हाथी के मस्तक काे कटे हुए मस्तक के स्थान पर स्थापित किया गया। असलियत में गणेश जी जन्म एवं स्वरूप मानव जाति काे प्रतीकात्मक रूप से ज्ञान देने के लिए बनाया गया है जैसे कि उनके सिर काे काटना अहंकार एवं अहम् काे खत्म करने का प्रतीक है तथा हाथी के मस्तक काे वहां लगाना उनके विचाराें में प्राैढ़ता एवं सहनशीलता के भावाें की आेर चिन्हित करता है।
गणेश जी का कोई भी चित्रपट अथवा मूर्त रूप देखें तो उसमें उन्हें हाथी का सिर लगा देखा जाता है। क्या आप जानते हैं गणेश जी का असली सिर कहां है?
जानिए कहां है गणेश जी का सिर?
हिमालय की वादियों के बीच एक दुर्गम स्थान पर ऐसी गुफा मौजूद है, जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने गणेशजी का सिर यहीं काटा था। लेकिन बाद में माता पार्वती के निवेदन पर इसी जगह गणेशजी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया।
ये गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में है। यह गुफा है पाताल भुवनेश्वर। पाताल भुवनेश्वर गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है। यह गुफा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है।
समुद्र तल से 1670 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद इस गुफा तक पहुंचना आसान नहीं है। यह गुफा अल्मोड़ा से 220 किमी दूर खूबसूरत लेकिन खतरनाक पहाड़ों के बीच मौजूद है।
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90 मीटर गहरी इस गुफा में उतरने के लिए 88 से ज्यादा सीढ़ियां बनी हुई हैं, जो कि गुफा की दीवारों से टपकते पानी की वजह से फिसलनभरी है।
गुफा के अंदर जाने का रास्ता-
गुफा में प्रवेश करने के लिए 3 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा मुंह बना हुआ है। मान्यता है कि जो यहां श्रद्धापूर्वक आता है, वही इसमें प्रवेश कर पाता है।
कब और किसने की गुफा की खोज-
अयोध्या के राजा ऋतुपर्णा भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने ही 6736 साल पहले इस गुफा की खोज की थी।
अगर पौराणिक इतिहास से जुड़ी अलग-अलग किताबों पर नजर डालें तो पता चलता है कि राजा ऋतुपर्णा का साम्राज्य ईसा पूर्व 4720 के आसपास यानी आज से 6736 साल पहले था।
कहा जाता है कि इस पृथ्वी लोक के निर्माण से पहले पाताल लोक में वे सारी घटनाएं पहले ही घटित हो चुकी थीं जो पृथ्वी लोक पर होंगी। यहां मौजूद पूरा ब्रह्मांड, 33 करोड़ देवी-देवता और भगवान शंकर की जटाएं इसी बात का सबूत हैं कि ये गुफा मानव-निर्मित नहीं है। ये किसी दैवी शक्ति की वजह से ही इसका निर्माण संभव हुआ है।
सिर काटे जाने के बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा से कहा था कि वे अपने नाभि-कमल से सिर कटे धड़ पर अमृत गिराएं, ताकि दूसरा सिर आने तक उस धड़ में जान बनी रहे।
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पंडितों और स्कंद पुराण के मुताबिक, गुफा में आज भी वो 100 पंखुड़ियों वाला ब्रह्म कमल सिर कटे हुए धड़ पर अमृत गिराता है। मान्यता है कि इसी अमृत के कारण आज भी गणेश जी के कटे धड़ में जान है।
पत्थर बताता है कब होगा कलयुग का अंत-
इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।
गुफा में मौजूद हैं केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ-
यहीं पर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।