भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें श्रधांजलि दी और कहा कि सरदार पटेल ने देश के लिए जो सेवा दी है उसके लिए प्रत्येक भारतीय उनका ऋणी रहेगा. देश के पहले उप प्रधानमंत्री पटेल का आजादी के तीन साल बाद 15 दिसंबर 1950 को 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. मोदी ने ट्वीट किया,‘‘हम महान सरदार पटेल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हैं. उन्होंने हमारे देश की जो स्मरणीय सेवा की, उसके लिए हर भारतीय उनका कर्जदार है.
We remember the great Sardar Patel on his Punya Tithi. Every Indian is indebted to Sardar Patel for his monumental service to our nation.
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2017
उप प्रधानमंत्री का पद छोड़ने वाले थे सरदार पटेल-
सरदार पटेल गांधी युग के उन चंद नेताओं में शामिल थे जो सिर्फ सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए जनसेवा के लिए सरकार में जाते थे. यदि किसी कारणवश वो जनसेवा नहीं कर पाते थे तो उनका पद खुद उन्हें बोझ लगने लगता था.
बता दें सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1948 में उप-प्रधानमंत्री पद से अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी. इस संबंध में 12 जनवरी, 1948 को उन्होंने महात्मा गांधी को पत्र लिखा था. मगर गांधी की मंजूरी नहीं मिलने के कारण वह इस्तीफा नहीं दे सके.
सरदार पटेल ने गांधी को लिखा था, ‘काम का बोझ इतना अधिक है कि उसे उठाते हुए मैं दबा जा रहा हूं. मैं समझ चुका हूं कि अब और अधिक समय तक बोझ उठाने से देश का भला नहीं होगा, बल्कि इसके विपरीत देश का नुकसान होगा.’ उन्होंने लिखा, ‘जवाहर लाल नेहरू पर और भी अधिक बोझ है. उनके हृदय में दर्द जमा हो रहा है. मेरी आयु के कारण मैं उनका (जवाहर लाल नेहरू) बोझ आसान करने में सहायक नहीं हो पाऊंगा. मौलाना अबुल कलाम आजाद मेरे कार्य से नाखुश हैं और मुझे यह विचार सहन नहीं हो पा रहा कि हर बार आपको मेरा बचाव करना पड़े.
इन परिस्थितियों में यदि आप मुझे शीघ्र मुक्त कर दें तो इससे मेरा और देश का भला होगा.’ पटेल ने आगे लिखा, ‘मैं वर्तमान में जिस ढंग से काम कर रहा हूं, उससे अलग तरीके से कार्य नहीं कर सकता. यदि मैं पद नहीं छोड़ता हूं और आंख बंद कर इससे चिपका रहता हूं तो लोग यह सोचेंगे कि मैं सत्ता सुख के लिए ऐसा कर रहा हूं. ऐसी स्थिति में मुझे मुक्ति दिलाई जानी चाहिए. मैं जानता हूं कि आपके उपवास के समय इन बातों पर विचार नहीं किया जा सकता. लेकिन मैं आपका उपवास खत्म करने में सहायक नहीं हो पा रहा हूं. इसलिए मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहा हूं. यदि आप शीघ्र उपवास खत्म कर दें और इस संबंध में निर्णय करें तो आपके उपवास के कारण भी दूर हो जाएंगे.
संविधान निर्माण में भी योगदान
संविधान निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान था. इस तथ्य को डॉ. अंबेडकर भी स्वीकार करते थे. सरदार पटेल मूलाधिकारों पर बनी समिति के अध्यक्ष थे. इसमें भी उनके व्यापक ज्ञान की झलक मिलती है. उन्होंने अधिकारों को दो भागों में रखने का सुझाव दिया था. एक मूलाधिकार और दूसरा नीति-निर्देशक तत्व.
मूलाधिकार में मुख्यत: राजनीतिक, सामाजिक, नागरिक अधिकारों की व्यवस्था की गई. जबकि नीति निर्देशक तत्व में खासतौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया गया. इसमें कृषि, पशुपालन, पर्यावरण, जैसे विषय शामिल है. इन्हें आगे आने वाली सरकारों के मार्गदर्शक के रूप में शामिल किया गया. बाद में न्यायिक फैसलों में भी इसकी उपयोगिता स्वीकार की गई. यहां इस प्रसंग का उल्लेख अपरिहार्य था.
सरदार पटेल भारत की मूल परिस्थिति को गहराई से समझते थे. वह जानते थे कि जब तक अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान महत्वपूर्ण बना रहेगा, तब तक संतुलित विकास होता रहेगा. इसके अलावा गांव से शहरों की ओर पलायन नहीं होगा. गांव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे. आजादी के बाद भारत को एक रखना बड़ी समस्या थी.