shivji bl post

कार्तिक पूर्ण‍िमा 2017: जानें – कैसे करें पूजा, क्‍या है नहाने तथा दान का महत्‍व?

कार्तिक महीना पूरा ही त्योहारों और व्रतों का माना जाता है।महीेने के 15वें दिन होती है पूर्णिमा। चांदनी रात की मनमोहक छटा के बीच कार्तिक पूर्णिमा का व्रत और पूजा की जाती है।इस साल कार्तिक पूर्ण‍िमा 4 नवंबर 2017 को है।इसी दिन श्री गुरु नानक देव प्रकाशोत्सव और श्री शत्रुंजय तीर्थ यात्रा भी शुरू होती है।

धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था। त्रिपुरों का नाश करने के कारण ही भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी कह कर भी पूजा जाने लगा।

kartik purnima२०१७

त्रिपुरासुर ने तीनो लोकों में आतंक मचाया हुआ था, उसके मरने पर सभी देवताओं ने रोशनी जलाकर खुशियां मनाईं। उसी के मद्देनज़र इसे देव दिवाली भी कहा जाता है।

वहीं पूर्णिमा के ही दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार भी लिया था। राधा-कृष्ण के भक्तों के लिये भी ये दिन काफी खास है।माना जाता है कि इस दिन राधा और कृष्ण ने रास किया था। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में शिवलिंग महाजल अभिषेक भी इसी दिन होता है।

कार्तिक महीने के दौरान गंगा में स्नान करने की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो जाती है जो कार्तिक पूर्णिमा पर खत्‍म होती है।इस दौरान हरिद्वार और गंगा जी में भारी भीड़ देखने को मिलती है।

यह भी पढ़ें :जानिए विक्रम संवत एवं ईसाईयत कैलेंडर का इतिहास

कार्तिक पूर्णिमा कथा:

 दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।
तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।

अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

यह भी पढ़ें: 3 दशक तक गंगा निर्मलीकरण के लिए काम करने वाले गंगासेवक कॉल लिनोक्स की अस्थियां मां गंगा में विसर्जित

चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।

दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।

कार्तिक पूजा कैसे करें:

कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा-अराधना करनी चाहिए।पूर्णिमा तिथि शुरू – 3 नवंबर 2017 13:46 से 4 नवंबर 2017 10:52 मिनट तक है. अगर संभव हो पाए तो पवित्र नदी में स्नान करें।अगर हो सके तो पूरे दिन या एक समय व्रत जरूर रखें।कार्तिक पूर्ण‍िमा के दिन खाने में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।अगर हो सके तो ब्राह्मणों को दान दें। केवल इतना ही नहीं, शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने से पुण्य की प्राप्त‍ि होती है।

kartik purnima snan

स्नान के बाद पूजा अर्चना, धूप और दीप करें। सच्चे मन से अराधना करें। इस दिन दान का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इस दिन जो भी दान दिया जाता है उसका लाभ कई गुणा हो जाता है।मान्यता यह भी है कि आप जो कुछ आज दान करते हैं वह आपके लिए स्वर्ग में सुरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में आपको प्राप्त होता है।

महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *