हिंदुत्व विरोधी बामपंथ की कट्टर समर्थक पत्रकार गौरी लंकेश की मंगलवार को बैंगलुरू में तीन अज्ञात हमलवारों ने गोली मारकर हत्या कर दी। जिस वक्त गौरी को गोली मारी गई, उस वक्त वो बैंगलुरू के राजाराजेश्वरी नगर में अपने घर के बाहर खड़ी थीं।
गौरी लंकेश की हत्या के बाद से कर्नाटक के साथ ही देश की सियासत गरमा गई है। क्योंकि उन्हें खुले तौर पर दक्षिणपंथी विचारधारा का विरोधी माना जाता था। ऐसे में उनकी हत्या को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं।
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गौरी लंकेश साप्ताहिक मैगजीन लंकेश पत्रिके की संपादक थीं, वह अख़बारों में भी कॉलम लिखती रहती थीं। गौरी लंकेश कट्टर हिंदुत्व विरोधी, बीजेपी विरोधी और माओवादी समर्थक पत्रकार थी।
गौरी लंकेश को एक बार बीजेपी नेताओं की शिकायत पर कोर्ट ने सजा भी सुना दी थी हालाँकि उन्हें जमानत मिल गयी थी। गौरी लंकेश लगातार आरोप लगाती रहती थी कि बीजेपी और मोदी भक्त उन्हें जेल भेजना चाहते हैं। गौरी लंकेश पर कई बार पेड खबरें छापने का भी कई बार आरोप लग चुका था।
जानें कौन थी गौरी लंकेश?
1962 में पैदा हुई गौरी लंकेश के पिता पी लंकेश खुद भी एक पत्रकार थे और कन्नड़ में लंकेश पत्रिका नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकालते थे। बाद में गौरी इसकी संपादक बनीं।
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लंकेश ने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत बैंगलुरू में ही एक अंग्रेजी अखबार से की थी। यहां कुछ वक्त काम करने के बाद वो दिल्ली चली गईं। कुछ साल दिल्ली में बिताने के बाद वो दोबारा बैंगलुरू लौट आईं और यहां 9 साल तक संडे नाम की एक मैग्जीन में बतौर कॉरेसपॉन्डेंट काम किया।
भाई ने लगाया था नक्सलियों को हीरो बनाने का आरोप-
पिता की मौत के बाद उनके भाई इंद्रजीत और उन्होंने पत्रिका लंकेश की कमान संभाली।कुछ साल तो उनके और भाई के रिश्ते ठीक रहे। मगर साल 2005 में नक्सलियों से जुड़ी एक खबर के चक्कर में भाई और उनकी बीच खटास पैदा हो गई। दरअसल भाई ने खबर के जरिए नक्सलियों को हीरो बनाने के आरोप लगाए। इसके बाद दोनों के बीच का विवाद खुलकर सामने आ गया।
दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि भाई इंद्रजीत ने उनके खिलाफ पुलिस थाने में ऑफिस के कम्प्यूटर,प्रिंटर चुराने की शिकायत कर दी। वहीं गौरी ने भाई के खिलाफ ही हथियार दिखाकर धमकाने की शिकायत दर्ज करा दी।
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इसके बाद गौरी ने अपना खुद की साप्ताहिक कन्नड़ गौरी लंकेश पत्रिका निकालनी शुरू कर दी। वो खुले तौर पर हिंदुत्ववादी राजनीति की मुखालफत करती थीं। साल 2003 में भी उन्होंने संघ परिवार की उस कोशिश का भी विरोध किया था। जिसके तहत बाबा बुदन गिरी में मौजूद गुरू दत्तात्रय बाबा बुदन दरगाह के हिंदूकरण की बात सामने आ रही थी।
इतना ही नहीं साल 2012 में उन्होंने एक प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया। जहां गौरी ने मैंगलोर के साम्प्रदायिक संस्थाओं पर बैन लगाने की वकालत की। इसी दौरान उन्होंने खुले तौर पर हिंदुत्व की विचारधारा को आड़े हाथों लिया और कहा कि हिंदू कोई धर्म नहीं है,बल्कि समाज का एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें महिलाओं को दोयम दर्जे का माना जाता है।
2008 में बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी और उमेश धुसी ने उनकी पत्रिका में छपे एक लेख पर विरोध दर्ज कराया था। दोनों ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोंका। कोर्ट में गौरी लंकेश अपनी रिपोर्ट को सही साबित नहीं कर पाईं। इस पर अदालत ने उन्हें छह महीने की जेल और जुर्माने की सज़ा भी दी थी।
गौरी लंकेश की हत्या को लेकर चौकाने वाला खुलासा-
बामपंथी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद कई पत्रकारों और संपादकों ने इसके लिए हिंदुत्ववादी विचारधारा को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। जो कि सही नहीं है। गौरी लंकेश की हत्या को लेकर जो सच्चाई सामने आ रही है वो चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक गौरी लंकेश की हत्या के पीछे कांग्रेस के लोगों पर शक है।
एबीपी न्यूज के संवाददाता विकास भदौरिया ने ट्वीट किया है कि वो कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार से जुड़ी एक खबर पर काम कर रही थीं। उनके अलावा भी कई स्थानीय और दूसरे पत्रकारों ने इस एंगल की तरफ ध्यान दिलाया है।
क्या है गौरी लंकेश की हत्या के पीछे क्या कारण?
खुद गौरी लंकेश ने एक जगह बताया था कि वो कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक डीके शिवाकुमार के खिलाफ एक मामले में जांच कर रही हैं। डीके शिवाकुमार वही विधायक हैं, जिनके रिसॉर्ट में गुजरात के कांग्रेसी विधायक रुके थे। उन पर सीबीआई के छापे भी पड़ चुके हैं। इसके अलावा कर्नाटक सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से जुड़े मामले भी गौरी लंकेश की पत्रिका में छपने वाले थे।
हालांकि खुद गौरी लंकेश ने कुछ ट्वीट में ऐसी बातें लिखी हैं जिनसे उनके और उनके वामपंथी साथियों के बीच किसी विवाद का संकेत मिलता है। इस सबसे अलग गुजरात के गृह मंत्री ने कहा है कि मामले में नक्सलियों का हाथ भी हो सकता है। जिस तरह से घर में घुसकर गोली मारी गई है। उससे लग रहा है कि हत्यारे उनकी जान-पहचान के थे।
सच्चाई क्या है ये तो पुलिस की जांच के बाद ही पता चल सकेगा, लेकिन जिस तरह से वामपंथी पत्रकारों ने इस मामले में आरएसएस और बीजेपी को दोषी ठहराना शुरू कर दिया उसी से शक पैदा हो गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।