गुजरात में चुनाव प्रचार जैसे-जैसे अपने चरम पर पहुंच रहा है, उतनी ही तेजी से चुनाव जाति समीकरण की तरफ बढ़ता दिख रहा है। चुनावी विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि इस बार गुजरात में भी राजनैतिक पार्टियाँ जातिगत समीकरणों को अपने पाले में करने के लिए इतने हाथ-पैर मार रही है।
हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहे गुजरात को बीजेपी के हाथों से छीनने के लिए कांग्रेस भी जातिसमीकरण के फोर्मुले पर काम कर रही है। अगर देखा जाये तो कांग्रेस के पास इसके सिवाए कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है और हाल ही में हुए घटनाक्रमों से सामाजिक तानेबाने में नए तरह का उभार भी देखने को भी मिल रहा है।
एक ओर जहां पाटीदारों का आरक्षण के लिए आंदोलन है तो दूसरी ओर दलितों के साथ हुई घटनाओं में के बाद से इस समाज में नाराजगी है. कांग्रेस के सामने एक यह भी बड़ी चुनौती है कि गुजरात में उसके पास कॉडर के नाम पर कुछ भी नहीं है उसके पास इतने समर्थित कार्यकर्ता नहीं है जो वोटरों को पोलिंग बूथ तक पहुंचा सकें. इसलिए कांग्रेस पाटीदार और दलित संगठनों के दम पर सत्ता तक पहुचने का प्रयास कर रही है।
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हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी जैसे जातिवादी नेता इस दिशा में काम कर रहे हैं। पहले के घटनाक्रम से सबक लेते हुए कांग्रेस धार्मिक गोलबंदी से जुड़ी बहस में नहीं पड़ना चाह रही है। ऐसे में बीजेपी को इससे निपटने के लिए हिंदुत्व के बजाय इस स्ट्रैटिजी पर फोकस करने पर मजबूत होना पड़ा है।
अमित शाह इस बात का राग अलाप रहे हैं कि किस तरह से कांग्रेस ने अतीत में चुनाव जीतने के लिए KHAM (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) पर फोकस किया था। गुजरात में क्षत्रिय और पटेल समुदाय एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं और चूंकि कांग्रेस हार्दिक पटेल को अपनी तरफ करने की कोशिश कर रही है, लिहाजा बीजेपी का मानना है कि दोनों समुदायों के बीच मतभेद पर जोर देने से विपक्ष कैंप में मुश्किल पैदा होगी।
गुजरात में क्षत्रिय ओबीसी कैटिगरी में हैं, जबकि पाटीदार ओबीसी कैटिगरी में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा, अल्पेश ठाकोर ओबीसी नेता हैं, जिनके हित हार्दिक पटेल से टकरा सकते हैं। भरत सिंह सोलंकी और शक्ति सिंह गोहिल जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कांग्रेस में हैं। क्षत्रिय समुदाय के एक और नेता शंकर सिंह वाघेला भी कुछ महीने पहले तक कांग्रेस में थे। पटेलों ने बीजेपी की फिक्र बढ़ा दी है, जो पिछले कई चुनाव से उसे वोट करते आए थे।
इन चुनावों में पटेल कांग्रेस के कैंप में जाते दिख रहे हैं। चुनाव से ऐन पहले कथित सीडी मामले में हार्दिक पटेल को निशाना बनाया गया है। पाटीदार कैंप में मतभेद की खबरें भी आई हैं। इसमें कुछ लोगों ने हार्दिक के खिलाफ बयान दिए हैं। यह पता नहीं है कि बीजेपी का इसमें हाथ नहीं है, लेकिन उसके नेताओं का मानना है कि इन मामलों से पार्टी को फायदा होगा।
बीजेपी अब तक राज्य में कांग्रेस की ‘खाम रणनीति’ को ध्रुवीकरण से धूल चटाती आई है। ध्रुवीकरण की वजह से जाति पर धर्म भारी पड़ता आया है। राज्य में 15 पर्सेंट पटेल वोटर हैं। ब्राह्मण और बनिया (10 पर्सेंट) के साथ मिलकर वे बीजेपी की जीत का आधार बन रहे थे।
ओबीसी में बीजेपी कोली समुदाय का समर्थन मिलने की उम्मीद कर रही है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसी जाति से आते हैं और राज्य में 20 पर्सेंट वोटर इस समुदाय से हैं। पार्टी कई अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन मिलने की भी उम्मीद कर रही है। इस बार कांग्रेस अभी तक बीजेपी की ध्रुवीकरण की चाल में नहीं फंसी है।
(भाषा से इनपुट)