अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में स्तिथ परशुराम महादेव गुफा मंदिर का निर्माण स्वंय परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर किया था। इस गुफा मंदिर तक जाने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्वयं भू शिवलिंग है जहां पर विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षो तक कठोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्होंने भगवान शिव से धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था।
परशुराम महादेव मंदिर पर सावन के दूसरे सोमवार को दर्शन के लिए शिवभक्तों की कतार रही। राजस्थान के अमरनाथ कहे जाने वाले इस मंदिर में मेवाड़ और मारवाड़ के भक्त सुबह चार बजे ही पहुंचना शुरू हो गए। सूरज निकलने पर यहां कतार बढ़ गई। शाम पांच बजे तक भक्तों की कतार कम नहीं हुई।
हैरतअंगेज वाली बात यह है कि पूरी गुफा एक ही चट्टान में बनी हुई है। ऊपर का स्वरूप गाय के थन जैसा है। प्राकृतिक स्वयं-भू लिंग के ठीक ऊपर गोमुख बना है, जिससे शिवलिंग पर अविरल प्राकृतिक जलाभिषेक हो रहा है। मान्यता है कि मुख्य शिवलिंग के नीचे बनी धूणी पर कभी भगवान परशुराम ने शिव की कठोर तपस्या की थी। इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई है। जिसे परशुराम ने अपने फरसे से मारा था।
परशुराम महादेव एक बहुत ऊँची पहाड़ी के बीच में एक गुफा में बने छोटे से मंदिर में विराजमान है। परशुराम महादेव मंदिर पर पहाड़ के बीच में जाने के दो रस्ते उपलब्ध है। एक रास्ता पहाड़ के निचे से शुरू होकर सीढ़ियों की चढाई चढ़ कर पहाड़ के बीच में बने मंदिर तक जाता है। तथा दूसरा रास्ता पहाड़ के ऊपर से सीढिया उत्तर कर मंदिर तक जाता है। महादेव जी जाने के लिए सीढिया उतर कर जाना अपेक्षा कृत सस्ता पड़ता है। वैसे दोनों रास्तो की चढाई काफी ऊँची है तथा कमजोर घुटने वालो के लिए यह एक कठिन कार्य है।
मंदिर बहुत ही मनोरम जगह पहाड़ के बीच में है। पहाड़ के ऊपर से दूर दूर का इलाका नजर आता है तथा बादल निचे दिखाई देते है। कुम्भलगढ़ से पहाड़ के ऊपर तक फोर व्हीलर बस, कार इत्यादि जाती है तथा वहा पर अच्छी पार्किंग व्यवस्था भी है। सावन के सोमवार, शिवरात्रि इत्यादि में यहाँ मेले जैसा माहोल रहता है। पार्किंग से थोड़ा आगे प्रसाद, फूल माला, भजन की कैसेट्स, महादेव जी के फोटो, चाय नास्ता इत्यादि के लिए दुकाने भी लगी हुई है। इन दुकानो से थोड़ा आगे गेट लगे हुए है जहा से चढाई उतरने की शुरुआत होती है।
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दुर्गम पहाड़ी, घुमावदार रास्ते, प्राकृतिक शिवलिंग, कल-कल करते झरने एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत होने के कारण भक्तों ने इसे मेवाड़ के अमरनाथ का नाम दे दिया है।
परशुराम महादेव का मंदिर राजस्थान के राजसमन्द और पाली जिले की सीमा पर स्तिथ है। मुख्य गुफा मंदिर राजसमन्द जिले में आता है जबकि कुण्ड धाम पाली जिले में आता है। पाली से इसकी दुरी करीब 100 किलोमीटर और विशव प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ दुर्ग से मात्र 10 किलोमीटर है।
मंदिर से जुडी एक मान्यता अनुसार गुफा मंदिर में स्थित शिवलिंग में एक छिद्र है जिसके बारे में मान्यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता है। इसी जगह पर परशुराम ने दानवीर कर्ण को शिक्षा दी थी।