भारत में नवरात्र के अवसर पर माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। नवरात्रि में माँ दुर्गा की शक्ति की देवी के रूप में पूजा की जाती है। नवरात्रि के पावन पर्व पर हम आपको आज एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना तोडऩे पहुंची लेकिन उसकी पूरी सेना मंदिर तोड़ने में असफल रही।
यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में है, जहां मां भक्तों के हाथों से प्रसाद के रूप में शराब भी पीती हैं। यह मंदिर है जीण माता मंदिर। जयपुर से जीण माता मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। कहा जाता है कि जीण माता के इस मंदिर को तुड़वाने के लिए औरंगजेब ने अपने सैनिक भेजे थे, लेकिन वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो सके।
जानिए कौन थी जीण माता-
पौराणिक कथा अनुसार जीण का जन्म घांघू गांव के एक चौहान राजपूत वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। उनका एक बड़ा भाई हर्ष भी था। जीण और हर्ष, दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था। जीण को शक्ति और हर्ष को भगवान शिव का रूप माना गया है।
कहा जाता है एक बार जीण अपनी भाभी के साथ पानी भरने सरोवर पर गई हुई थी। दोनों में इस बात को लेकर पहले तो बहस हो गई कि हर्ष सबसे ज्यादा किसे मानते हैं। दोनों में शर्त लग गई जिसके सिर पर रखा मटका हर्ष पहले उतारेगा, उससे पता चल जाएगा कि हर्ष किसे सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं।
इसके बाद दोनों हर्ष के सामने पहुंची। हर्ष ने सबसे पहले अपनी पत्नी के सिर पर रखा मटका उतारा। जीण शर्त हार गई। इससे नाराज होकर जीण अरावली के काजल शिखर पर बैठी गई और तपस्या करने लगी। हर्ष मनाने गया, लेकिन जीण नहीं लौटी और भगवती की तपस्या में लीन रही। बहन को मनाने के लिए हर्ष भी भैरों की तपस्या में लीन हो गया। मान्यता है कि तभी से दोनों की तपस्या स्थली जीणमाता धाम और हर्षनाथ भैरव के रूप में जानी जाती है।
मंदिर तोड़ने औरंगजेब ने भेजी सेना-
मान्यतानुसार जीण माता के मंदिर को तुड़वाने के लिए एक बार मुगल शासक औरंगजेब ने अपने सैनिकों को भेजा। इस खबर से कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के लिए सैनिक भेजे है, गाँव वाले बहुत दुखी हो गए। गाँव वालों ने मंदिर न तोड़ने के लिए सैनिको से आग्रह भी किया, लेकिन वह नहीं माने। आखिर में गाँव वाले दुखी होकर मंदिर में माता की आराधना करने लगे।
कहा जाता है कि गांव वालों की प्रार्थना को जीण माता ने सुन लिया था। उन्हीं के प्रताप से मंदिर तोड़ने आए सैनिकों पर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया। मधुमक्खियों के काटे जाने से बेहाल पूरी सेना घोड़े और मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। तभी से लोगों की श्रद्धा इस मंदिर पर और भी बढ़ गई।
एक बार औरंगजेब जब बुरी तरह बीमार पड़ गया था। उसके बाद वह अपनी गलती की माफी मांगने जीण माता मंदिर पहुंचा। उसने यहां जीण माता से माफी मांगी और एक अखंड दीपक के लिए हर महीने सवा मन तेल चढ़ाने का वचन दिया। उसके बाद औरंगजेब की तबियत में सुधार होने लगा। तभी से मुगल बादशाह की इस मंदिर में आस्था हो गई।
कहा जाता है कि औरंगजेब ने दीपक जलाने के लिए कई सालों तक तेल दिल्ली से भेजा। फिर जयपुर से भेजा जाने लगा। औरंगजेब के बाद भी यह परंपरा जारी रही और जयपुर के महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्र के समय भिजवाना आरम्भ कर दिया। महाराजा मान सिंह के समय उनके गृह मंत्री राजा हरी सिंह अचरोल ने बाद में तेल के स्थान पर नगद 20 रु. तीन आने प्रतिमाह कर दिए। जो निरंतर प्राप्त होते रहे।
जीण माता मंदिर में हर वर्ष नवरात्रि में मेला लगता है, इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मेले के अवसर पर राजस्थान के बाहर से भी लोग आते हैं। मेला लगने पर मंदिर के बाहर सपेरे मस्त होकर बीन बजाते हैं। मंदिर में बारहों मास अखण्ड दीप जलता रहता है।