पाकिस्तान में दशकों के विलंब और निष्क्रियता के बाद सिंध प्रांत की असेंबली ने हिंदू विधवा महिलाओं को दोबारा शादी करने का हक दे दिया। देश के संसदीय पैनल ने हिंदू विवाह विधेयक को मंजूरी दे दी है। नेशनल असेंबली की कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति ने रविवार को हिंदू विवाह विधेयक, 2015 के अंतिम मसौदे को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी है। इस पर विचार के लिए खास तौर पर पांच हिंदू सांसदों को पैनल ने आमंत्रित किया था।
पाकिस्तान में अब हिंदू महिलाएं पति की मृत्यु के 6 महीने बाद दूसरी शादी कर सकती हैं। इसके अलावा हिंदू महिलाएं शादी खत्म करने के लिए याचिका भी दे सकती हैं। इससे पहले अल्पसंख्यक महिलाओं, विधवाओं और तलाकशुदा को कानूनी रूप से दूसरा विवाह करने की अनुमति नहीं थी।
बता दें दो साल पहले सिंध प्रांत की विधानसभा ने हिंदू विवाह कानून (2016) भी पारित किया था। इसके तहत प्रांत में रह रहे 30 लाख से ज़्यादा हिंदू समुदाय के लोगों को विवाह पंजीकरण आदि से संबंधित हक दिए गए थे।
मुस्लिम लीग के नंद कुमार गोकलानी ने इस बिल को असेंबली में पेश किया। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में खास तौर से विधवा महिलाओं को रूढ़िवादी रीति रिवाज दोबारा विवाह करने की अनुमति नहीं देते थे। इस कानून के बनने के बाद विधवा महिलाओं को शादी करने का अधिकार मिलेगा।
सिंध के कानून मंत्री ने कहा कि बिल सर्वसम्मति से पास हुआ। गौरतलब है कि पाकिस्तान में हिंदू आबादी का अधिकांश हिस्सा सिंध प्रांत में रहता है, जिसमें हैदराबाद, सुक्कर और कराची के कुछ क्षेत्र शामिल हैं।
संशोधित विधेयक में बहुविवाह पर भी रोक लगाई गई है, इसके मुताबिक पति-पत्नी अगर अलग रह रहे हैं और उनमें तलाक नहीं हुआ है तो वह दूसरा विवाह नहीं कर सकते।
कोई अगर इस विधेयक के बाद अपने पार्टनर से झूठ बोलकर दूसरी शादी करता या करती है तो उसे 6 महीने की कैद और 5 हजार रुपए जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
इस कानून के मुताबिक शादी के लिए लड़का-लड़की की उम्र 18 साल होना चाहिए। गौरतलब है कि सिंध प्रांत में अल्पसंख्यकों में 18 साल से पहले ही शादी करने के कई मामले सामने आए हैं। जिसे रोकने के लिए सरकार ने कानून में बदलाव किए हैं।