भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर एक बार सभी राजनैतिक दलों को चौंका दिया है। रामनाथ कोविंद के.आर. नारायणन के बाद देश के दूसरे और उत्तर भारत से पहले दलित राष्ट्रपति होंगे। दरअसल, अप्रैल में नीत आयोग की बैठक से इतर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में ही तय हो गया था कि पार्टी दलित चेहरे को ही राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाएगी। कोविंद को उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने दलित वोटों पर निशाना साधा है। साथ ही विपक्ष को भी विरोध न करने की स्थिति में ला खड़ा कर दिया है।
नीति आयोग की बैठक में लिया था फैसला-
23 अप्रैल को दिल्ली में नीति आयोग की बैठक हुई थी। इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए थे। इसी दिन शाम को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की दिल्ली पार्टी कार्यालय में बैठक बुलाई थी। तब सभी मुख्यमंत्रियों को टटोला गया था।
मई में केंद्र सरकार के तीन साल का कार्यकाल पूरा होने पर पार्टी ने गांव-गांव तक नीतियों और विचारों को पहुंचाने का संकल्प लिया। पार्टी ने देश के 15 फीसदी दलित वोटों को साधने के लिए भी चर्चा की। इसमें राष्ट्रपति पद भी एक अहम एजेंंडा था।
इसी महीने कोविंद दिल्ली गए थे। उन्होंने मोदी, शाह और संघ के सर्वोच्च पदाधिकारियों से मुलाकात की थी। तभी कोविंद को तैयार रहने के लिए कह दिया गया था। हालांकि, इसकी चर्चा न तो मीडिया में हुई और न हीं संगठन के प्रमुख नेताओं को इसकी भनक लगने दी गई। कोविंद प्रधानमंत्री के बुलावे पर सोमवार शाम दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
संभवत: 23 जून को वे नॉमिनेशन फाइल करेंगे। कोविंद 1991 में भाजपा में शामिल हुए। 1994 में यूपी से पहली बार राज्यसभा सांसद चुने गए। 2006 तक सांसद रहे। पार्टी की टिकट से वे दो बार चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन दोनों ही बार हार का सामना करना पड़ा।
बीजेपी की संसदीय दल की बैठक से पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने राज्यपाल रामनाथ कोविंद से आधे घंटे तक फोन पर बात की। इसके बाद रामनाथ पूजा करने चले गए। उन्हें पता था अब बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है। राजभवन की सरगर्मी तो रविवार की सुबह से ही बढ़ गई थी। भाजपा के कई बड़े नेताओं के फोन आने शुरू हो गए थे, लेकिन सोमवार को एनडीए की बैठक से कुछ पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का फोन आने के बाद हलचल बढ़ गयी थी। राज्यपाल अमित शाह से बातचीत के बाद कोविंद पूजा रूम में प्रवेश कर गए।
प्रधानमंत्री मोदी ने दी कोविंद को बधाई-
एनडीए की बैठक खत्म होते ही मोदी ने सबसे पहले राज्यपाल रामनाथ कोविंद को बधाई दी। मोदी ने राज्यपाल को बताया कि एनडीए ने आपको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है।
राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए जाने की यह सूचना सबसे पहले पत्नी को दी। इसके बाद राज्यपाल के बच्चों ने भी उन्हें फोन कर बधाई दी।
जानिए कैसे राष्ट्रपति की दौड़ से बाहर हो गए थावरचंद?
राष्ट्रपति पद के लिए थावरचंद गहलोत का भी नाम लिया जा रहा था और वो राष्ट्रपति पद की रेस में भी थे लेकिन एक फर्जीवाड़े में नाम आने से थावरचंद रेस से बाहर हो गए।
बीजेपी ने भी केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का पूरा मन बना लिया था। पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी गहलोत को इस निर्णय के बारे में संकेत भी दे दिया था। पर इस बीच मोदी के पास थावरचंद के कथित फर्जीवाड़े से जुड़ी एक शिकायत के दस्तावेज पहुंच गए। और थावरचंद रेस से बाहर हो गए।
जानिए कौन है रामनाथ कोविंद?
रामनाथ कोविंद बचपन में अपने पिता मैकू लाल के साथ पंचायत में जाया करते थे। इन्ही पंचायतों में शामिल होकर ही वह वकालत और राजनीति के लिए प्रेरित हुए। जब कोविंद ने पहली बार कानपुर के घाटमपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा तब इनके साथ पूरा गांव खड़ा हो गया था।
ठुकरा चुके है आईएएस की नौकरी-
रामनाथ कोविंद का आईएएस में चयन हो गया था लेकिन उन्होंने इस नौकरी को ठुकरा दिया था। रामनाथ कोविंद को तीसरे प्रयास में सफलता मिली, लेकिन उन्होंने इस जॉब को इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि मुख्य सेवा के बजाय एलाइड सेवा में चयन हुआ था। 1971 में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में रजिस्टर्ड हुए। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में 16 साल तक वकालत का अनुभव।
बचपन से ही कोविंद का मन पढ़ाई-लिखाई में लगता था। इसलिए पढ़ने के लिए भंडार घर को ही अपना स्टडी रूम बना लिया था वो ज्यादातर यहीं रहकर पढ़ाई करते थे। जब वो पढ़ाई के लिए शहर गए तब कोर्ट में स्टेनो की नौकरी करने लगे। ताकि पिताजी से पैसे न मंगाना पड़े।
कोविंद को पढ़ाने के लिए पिता ने बेच दी थी जमीन-
जब कोविंद 5 साल के थे तभी मां का निधन हो गया था। उनकी बड़ी बहन गोमती देवी ने देखरेख की। पांच भाई और दो बहनों में रामनाथ सबसे छोटे हैं। पिता गांव के एक मामूली वैद्य थे। कानपुर यूनिवर्सिटी से बी. कॉम और एल. एल. बी. की डिग्री हासिल की। रामनाथ पढ़ने में अच्छे थे तो पिता ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया। पैसे थे नहीं तो गांव की जमीन बेचनी पड़ी।
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