Vikram Samvat

जानिए विक्रम संवत एवं ईसाईयत कैलेंडर का इतिहास

विक्रम संवत का इतिहास-

प्राचीन समय में सप्तर्षि संवत प्रचलन में था। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने कलियुग में धार्मिक साम्राज्य स्थापित करने के लिए इसी दिन विक्रमी संवत स्थापित किया था; इसमें नववर्ष की शुरुआत चंद्रमास के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। इसमें महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ।

महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।

विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। चैत्र मास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई, इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। प्रभु श्री राम तथा युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। यह शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन भी है।
इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।

जानिए कैसे बना ईसाईयत कैलेंडर-

दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं।

किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ।

लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा 365/366 में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए।

पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था। 1.- एकाम्बर ( 31 ) 2.- दुयीआम्बर (30) 3.- तिरियाम्बर (31) 4.- चौथाम्बर (30) 5.- पंचाम्बर (31) 6.- षष्ठम्बर (30) 7.- सेप्तम्बर (31) 8.- ओक्टाम्बर (30) 9.- नबम्बर (31) 10.- दिसंबर ( 30 ) 11.- ग्याराम्बर (31) 12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर – जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया।

इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे। जनवरी (31), फरबरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31), अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया।

फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि – उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि – उसके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए। राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया। एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया।

25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas कहा जाता है, क्योंकि पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। “X” रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना। युरोप में ईसाईयत का आरम्भ होने के साथ वर्ष की शरुआत ईसा के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ मानागया। सन् 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नव वर्ष घोषित किया गया।
इसके माह के नाम व दिन – जनवरी (31), फरवरी (28 / 29 ), मार्च ( 31 ), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31), अगस्त (30), सेप्तम्बर (31), अक्तूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर (30) कर दिए गए।

 

विक्रम संवत एवं अंग्रेजी कैलेण्डर में अंतर-

विक्रम कलेंडर ऋतुओं (मौसम) के अनुसार चलता है, समस्त मास (महीने) का नाम 28 में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। कान्ती वृन्त पर 12 महीने की सीमायें तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग हैं और नाम भी तारा मण्डलों के आकृतियों के आधार पर रखे गये हैं।

जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ –

1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास l
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास l
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास l
4. पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा नक्षत्र से आषाढ़ l
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास l
6. पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र से भाद्रपद l
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास l
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास l
9. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास l
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास l
11. माघा नक्षत्र से माघ मास l
12. पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी से फाल्गुन मास l

वैदिक काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अन्तर नहीं पड़ता; इसका अध्ययन करते हुए विश्व के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं कि अत्यंत प्रागैतिहासिक काल में भी भारतीय ऋषियों ने इतनी सूक्ष्तम् और सटिक गणना कैसे कर ली।
चूंकि सूर्य कान्ति मण्डल के ठीक केन्द्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है, और अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगता है।

यूरोपीय कैलेण्डर अव्यवस्थित है,पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते है। अंग्रेज़ी वर्ष में प्रत्येक चार वर्ष के अन्तराल पर फरवरी महीने को लीप इयर घोषित कर देते है, परन्तु फिर भी नौ मिनट 11 सेकण्ड का समय बच जाता है तो प्रत्येक चार सौ वर्षो में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है।

मार्च 21 और सेप्तम्बर 22 को equinox (बराबर दिन और रात) माना जाता है, परन्तु अन्तरिक्ष विज्ञान के अनुसार सभी वर्षों में यह अलग-अलग दिन ही होता है। यही उत्तरी गोलार्ध में जून 20-21 को सबसे बड़ा दिन और दिसंबर 20-23 को सबसे छोटा दिन मानने के नियम पर भी है, यह वर्ष कभी सही दिनांक नहीं देता। इसके लिए पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकण्ड स्लो कर दिया गया फिर भी 22 सेकण्ड का समय अधिक चल रहा है; यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है जहां की सीजीएस (CGS) सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किये जाते हैं। ये ऐसा इसलिए है क्योंकि उसको वैदिक कैलेण्डर की नकल अशुद्ध रूप से तैयार किया गया था।

 

विक्रम संवत ही क्यों?

12 बजे आधी रात से नया दिन का कोई तुक नहीं बनता है। दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कहते हैं, और यहाँ से नए दिन की तैयारी होती है। प्राचीन समय में भारत विश्वगुरु था, इसलिए कलियुग के समय ज्ञान के अभाव में यूरोप के लोग भारतियों का ही अनुकरण करना चाहते थे। अत: वे अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते थे क्योंकि इस समय भारत में नया दिन होता है, इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे।

अंग्रेज चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। सच तो यह है कि अंग्रेज वह कौम है जिसको बिना मांगे ही दत्तक पुत्र मिल जाते हैं जो भारतीय माता पिता स्वयं उनको सौंपते हैं। सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं।

दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था। कलियुग के इस समय में सनातनी भाई ईसाईयत कैलेण्डर को ही अपना कैलेण्डर मान बैठें हैं परन्तु आवश्यकता है कि हम अपने स्वर्णिम कैलेण्डर को न भूलें और न अपने नववर्ष को।

रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष ब्रह्म-मुहूर्त्त में पूजा करके सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। आप सभी नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर व्यर्थ का हंगामा करने के बजाये, पूर्णरूप से वैज्ञानिक सनातनी हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार ले नव वर्ष प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नववर्ष का स्वागत करें, यही सनातन वर्ष का उत्तम उपहार होगा। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।

(एजेंसियों से इनपुट )

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5 thoughts on “जानिए विक्रम संवत एवं ईसाईयत कैलेंडर का इतिहास”

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